Reading book "Path Ke Dawedaar" written by Sharatchandra Chattopadhyaya.....Few lines from it.
वह वहीँ खड़ाखड़ा उच्छ्वासित आवेग से मन ही मन कह उठा, लोग कहते हैं - यही
दुनिया है. संसार के सब काम इसी तरह हमेशा होते आएं हैं. पर यह भी कोई तर्क
है? यह संसार क्या अतीत के लिए ही है? मनुष्य क्या अपने पुराने संस्कार लेकर
ही अचल बना रहेगा? क्या किसी नयी बात की कल्पना नहीं कर सकेगा? क्या
उन्नति करने के उस के सभी प्रयत्न पूरे हो चुके हैं, जो बीत चुका है, जो मर चुका है,
केवल उस की ही इच्छा,उन्ही का विधान क्या मनुष्य के सम्पूर्ण भविष्य को, सम्पूर्ण
जीवन को और महान बनने के सभी द्वारों को बंद कर चिरकाल तक अपना प्रभुत्व
करता रहेगा?
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