While surfing net I come across below shayaries which were written at
different times by different people as a reply to former one on the issue of
drinking and concept of God. I found it really interesting so sharing with you...
Ghalib
शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर ,
या वो जगह बता जहाँ ख़ुदा नहीं
Iqbal
मस्जिद ख़ुदा का घर है, पीने की जगह नहीं ,
काफिर के दिल में जा वहाँ ख़ुदा नहीं
Faraz
काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर ,
खुदा मौजूद है वहाँ पर उसे पता नहीं
Wasi
खुदा तो मौजूद दुनिया में हर जगह है,
तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं
Saqi
पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए,
जन्नत में कौनसा ग़म है इसलिए वहाँ पीने में मजा नहीं
Ghalib
शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर ,
या वो जगह बता जहाँ ख़ुदा नहीं
Iqbal
मस्जिद ख़ुदा का घर है, पीने की जगह नहीं ,
काफिर के दिल में जा वहाँ ख़ुदा नहीं
Faraz
काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर ,
खुदा मौजूद है वहाँ पर उसे पता नहीं
Wasi
खुदा तो मौजूद दुनिया में हर जगह है,
तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं
Saqi
पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए,
जन्नत में कौनसा ग़म है इसलिए वहाँ पीने में मजा नहीं
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